इस बार फीफा वर्ल्ड कप के प्रबलतम दावेदारों में अर्जेंटीना को भी शुमार किया जा रहा है. लेकिन अपने पहले ही मैच में आइसलैंड ने उसे 1-1 की बराबरी पर रोककर सनसनी मचा दी. अर्जेंटीना के कप्तान लियोनेल मेसी के पेनल्टी शूट को रोककर आईसलैंड के गोलकीपर हानेस होल्डरसन रातोंरात अपने देश के हीरो बन गए हैं. आईसलैंड इस वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रहे देशों में सबसे छोटा है. आईसलैंड की आबादी महज साढ़े तीन लाख है.
इस मैच के बाद एक सवाल हमारे देश में हर फुटबॉल प्रेमी की जुबान पर है. जब आईसलैंड ऐसा कारनामा कर सकता है तो फिर भारत क्यों नहीं? पूरे देश की बात तो छोड़ ही दिजिए. सिर्फ हमारे देश की राजधानी दिल्ली के साथ ही तुलना कर देख लीजिए. दो,चार,पांच,दस नहीं आइसलैंड की जैसी आबादी वाले करीब साठ देश सिर्फ दिल्ली में ही घुस जाएंगे. फिर भी, ये 21वां वर्ल्ड कप है और भारत ने आज तक एक बार भी फुटबॉल के वर्ल्ड कप में शिरकत नहीं की है. इस साल भी भारत ने क्वालीफाइंग राउंड में हिस्सा लिया था. लेकिन वर्ल्ड कप में हम क्वालीफाई नहीं कर पाए.
क्या भारत में फुटबाल के प्रति जोश और जुनून की कमी है? ऐसा नहीं है. भारत में क्रिकेट के बाद फुटबॉल को ही सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है. भारत के नहीं खेलने के बावजूद फीफा वर्ल्ड कप को लेकर दीवानगी भारत में भी कम नहीं. देर रात होने वाले मैच भी फुटबॉल के दीवाने अपनी रातों की नींद खराब करके भी देख रहे हैं.
पेरिस की प्रसिद्ध संस्था आईपीएसओएस ने हाल ही में दुनिया भर में एक ऑनलाइन सर्वे किया था. इस सर्वे के अनुसार टीवी पर मैच देखने के मामले में हमारा देश ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे देशों से भी आगे तीसरे नंबर पर विराजमान है. 31 प्रतिशत भारतीय फुटबॉल मैचों का आनंद लेते हैं. 2014 के मुकाबले ये दीवानगी 6 फीसदी और बढ़ी है.
भारत में फुटबॉल के लिए इसी दीवानगी को देखते हुए फीफा वर्ल्ड कप के मैचों का प्रसारण दिखाने के खास इंतजाम किए गए हैं. भारत में सोनी-टेन इन मैचों का प्रसारण कर रही है. इसबार भारत की विभिन्न भाषाओं में मैच दिखाए जा रहे हैं. पिछले साल अंडर 17 का वर्ल्ड कप भारत में ही आयोजित किया गया. सभी मैचों के दौरान स्टेडियम भरे नजर आए. टीवी पर इसे 68 मिलियन लोगों ने देखा. आईपीएल की तर्ज पर ही शुरु किए गए इंडियन सुपर लीग यानि आईएसएल को इस साल 81 मिलियन से ज्यादा लोगों ने देखा. हालांकि ये आंकड़ें अभी क्रिकेट के मुकाबले कम हैं लेकिन ये भी सच है कि फुटबॉल को इतने दर्शक दूसरे देशों में कम ही मिलते हैं.
क्रिकेट में 1983 में कपिल देव की अगुवाई में विश्व कप की जीत ने क्रिकेट को वो जमीन मुहैय्या करा दी थी जिसपर फलफूल कर क्रिकेट आज हमारे देश में इस मुकाम पर खड़ा है. फुटबॉल में बरसों से हम ऐसी किसी जीत को तरस रहे हैं जो बच्चे-बच्चे की जुबान पर फुटबॉल का नाम उसी तरह ला दे. हमारे देश में फुटबॉल का इतिहास एक सदी से भी पुराना है. एशिया की सबसे पुरानी फुटबॉल प्रतियोगिता डूरंड कप 1888 में भारत में ही शुरु हुई. दुनिया के सबसे पुराने फुटबॉल क्लबों में एक मोहन बगान 1889 में स्थापित हुआ था. इस्ट बंगाल क्लब भी 1920 का ही है.
यानि ना तो जोश और जुनून में कमी है और ना ही ऐसा है कि यहाँ की मिट्टी में ये खेल रचा बसा नहीं है. फिर भी फुटबॉल में हम विश्व स्तर पर स्थापित नहीं हो पाए हैं. लेकिन अब माहौल बदला है. आईएसएल के शुरु होने से ग्लैमर और पैसा दोनों अब फुटबॉल से भी जुड़ा है.
वाइचिंग भूटिया औऱ सुनील छेत्री जैसे खिलाड़ी भी फुटबॉल से निकले हैं जिन्होंने विश्व स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखायी है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले सालों में भारत की फुटबॉल टीम भी फीफा वर्ल्ड कप खेलती हुई दिखेगी.