गुरुवार की देर रात खत्म हुए अर्जेंटीना और क्रोएशिया के मैच के नतीजे ने सबको चौंका दिया. अर्जेंटीना जैसी मजबूत टीम को क्रोएशिया ने 3-0 से शिकस्त दे दी. इस मैच में सबकी नजरें दस नंबर की जर्सी पहनने वाले अर्जेंटीना के कप्तान लियोनेल मेसी पर टिकी थी. लेकिन लोगों का दिल जीता क्रोएशिया के कप्तान ल्यूका मॉड्रिक ने. मॉड्रिक ने अपनी टीम के लिए शानदार गोल किया. मॉड्रिक भी दस नंबर की जर्सी ही पहन कर खेलते हैं.
आखिर क्या खास है इस दस नंबर की जर्सी में? दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी दस नंबर की जर्सी पहन कर खेलना पसंद करते हैं. वर्तमान में दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ी माने जाने वाले लियोनेल मेसी दस नंबर की जर्सी पहनते हैं. उनके ऊपर अपनी टीम अर्जेंटीना को कप जिताने की जिम्मेदारी है. ब्राजील की टीम भी नेमार जैसे खिलाड़ी के नेतृत्व में छठीं बार कप जीतने का सपना लेकर आयी है. दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार नेमार भी दस नंबर की जर्सी में ही खेलते हैं. दस नंबर की जर्सी पहनना शान और प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है. आमतौर पर टीमें अपने सबसे बेहतरीन खिलाड़ी को ही दस नंबर की जर्सी देती हैं.
आपको याद ही होगा कि भारत में क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर भी दस नंबर की जर्सी ही पहनते थे. हमारे देश में इस नंबर को खास पहचान देने वाले तेंदुलकर ही हैं. भारत में दस नंबर की जर्सी और सचिन तेंदुलकर का नाम आपस में घुलमिल सा गया है. तेंदुलकर पहले 99 नंबर की जर्सी पहन कर खेलते थे. फिर बाद में उन्होंने 10 नंबर को अपनाया. इसके पीछे दो कारण होंगे. पहला, दस नंबर की जर्सी से जुड़ी विरासत और दूसरा, शायद ये कि तेंदुलकर के नाम को अंग्रेजी में लिखते समय टेन शब्द आता है. 1999 में आईसीसी वर्ल्ड कप में तेंदुलकर ने पहली बार दस नंबर की जर्सी पहनी थी. उसके बाद तो फिर रिकॉर्ड टूटते गए और दस नंबर की जर्सी की प्रतिष्ठा दुनिया भर में और बढ़ती गयी.
तेंदुलकर ने नवंबर 2013 में क्रिकेट से सन्यास ले लिया. तेंदुलकर के बाद दस नंबर की जर्सी भारत में सिर्फ एक बार एक ही खिलाड़ी ने पहनी. ये खिलाड़ी थे मुम्बई के पेसर शार्दूल ठाकुर. ठाकुर ने अगस्त’2017 में कोलंबो में श्रीलंका के खिलाफ अपना पहला एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला था. इस मैच में वो दस नंबर की जर्सी पहन कर खेलने उतरे. लेकिन इसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर इतना ट्रॉल किया गया कि उन्हें दस नंबर की जर्सी पहनने पर सफाई देनी पड़ी. सोशल मीडिया पर उनकी तेंदुलकर से तुलना को लेकर खूब किरकिरी हुई. बाद में ठाकुर ने कहा कि सिर्फ न्यूमरोलॉजिकल कारणों से उन्होंने दस नंबर की जर्सी चुनी थी. हालांकि इसके बाद ठाकुर ने इस नंबर को छोड़ दिया. बाद में जब वो न्यूजीलैंड के खिलाफ खेलने उतरे तो उन्होंने 54 नंबर की जर्सी पहनी थी.
यानि दस नंबर की जर्सी का प्रभाव इतना ज्यादा है. तेंदुलकर के रिटायर होने के बाद उनकी आईपीएल टीम मुम्बई इंडियन ने उनको सम्मान देते हुए दस नंबर की जर्सी को भी रिटायर कर दिया. मुम्बई इंडियन में अब किसी भी खिलाड़ी को दस नंबर की जर्सी नहीं मिलती. बीसीसीआई ने भी अब एकतरह से अऩाधिकारिक तौर पर दस नंबर की जर्सी को रिटायर कर ही दिया है. टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने तेंदुलकर को सम्मान देते हुए दस नंबर की जर्सी पहनने से इंकार कर दिया है.
तेंदुलकर के अलावा पाकिस्तान के धुरंधर खिलाड़ी शाहिद आफरीदी भी दस नंबर की जर्सी पहन कर ही खेलते थे.
लेकिन आखिर दस नंबर की जर्सी इतनी महत्वपूर्ण क्यों मानी जाती है. इसके साथ शान और प्रतिष्ठा की इतनी लंबी विरासत आखिर कैसे जुड़ गयी? आखिर कब ये नंबर हर खिलाड़ी का सपना बन गया?
दस नंबर की जर्सी से जुड़े हर सवाल का जवाब फुटबॉल के मैदान से निकलता है. इस नंबर की जर्सी को पहली बार ऊंचाईयों पर पहुंचाने वाले खिलाड़ी है फुटबॉल के भगवान कहे जाने वाले – पेले.
साल था 1958. एक 17 साल का दुबला-पतला सा लड़का ब्राजील की टीम में अपनी पहचान बनाने को जी-जान से लगा हुआ था. 1958 के फीफा वर्ल्ड कप में उसे प्रमुख स्ट्राइकर वावा के साथ खेलने का मौका मिला. इसके बाद जो हुआ वो इतिहास बन गया. पेले ने 1958 वर्ल्ड कप में पांच सबसे महत्वपूर्ण गोल किए. वर्ल्ड कप फाइनल में भी पेले ने एक जोरदार गोल दागा था. 1958 वर्ल्ड कप में पेले की जर्सी का नंबर दस था और इसके बाद से ये नंबर उनके ही पास रहा.
1958 वर्ल्ड कप में पेले को दस नंबर की जर्सी मिलने के पीछे भी कारण था. इस वर्ल्ड कप में ब्राजील की टीम 4-2-4 की पोजीशन की साथ खेली थी. यानि 4 डिफेंडर, 2 मिडफील्डर, 4 स्टाईकर. पेले जिस पोजीशन पर खेलते थे वो दसवें नंबर पर आती थी. गोलकीपर को 1 नंबर की जर्सी दी गयी और इसी क्रम से बढ़ते हुए पेले को जो जर्सी मिली उसका नंबर दस था. इस तरह संयोग से मिला नंबर आने वाले दिनों में फुटबाल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण नंबर बन गया.
पेले ने ही दस नंबर की जर्सी को पहचान दी. 1958 के बाद 1962 और फिर 1970 में भी पेले के शानदार खेल की वजह से ब्राजील फीफा वर्ल्ड कप चैंपियन बना. इस दौरान पेले का नाम दुनिया भर में फैल गया. पेले की शोहरत का आलम ये है कि फुटबॉल के बारे में कुछ भी नहीं जानने वाले लोग भी पेले का नाम जरुर जानते हैं.
पेले के बाद कई दिग्गजों ने दस नंबर की जर्सी ही पहनना पसंद किया. धीरे-धीरे कुछ ऐसा माना जाने लगा कि टीम का सबसे अच्छा खिलाड़ी ही दस नंबर की जर्सी का हकदार है. दस नंबर की जर्सी को और प्रतिष्ठा दी करिश्माई खिलाड़ी डिएगो माराडोना ने. माराडोना की कप्तानी में अर्जेंटीना ने पश्चिम जर्मनी को हराकर 1986 का फीफा वर्ल्ड कप जीता. सेमीफाइनल में बेल्जियम के खिलाफ किए गए माराडोना के दो गोल आज भी लोगों को याद हैं. माराडोना को गोल्डन बॉल का अवार्ड भी मिला.
इसके बाद तो दस नंबर की जर्सी की शान और इज्जत बढ़ती ही गयी.
इटली के दिग्गज रॉबर्टों बैजियो ने दस नंबर की जर्सी ही पहनी. वे 1990,1994,1998 के तीन वर्ल्ड कप में लगातार खेले. हालांकि वो इटली को कप नहीं दिला पाए लेकिन वो वर्ल्ड कप में इटली के लिए सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी है.
फ्रांस के महान खिलाड़ी जिनेदिन जिदान भी दस नंबर की जर्सी पहन कर ही खेलते थे. 1998 में जिदान के दो गोलों की वजह से ही फ्रांस ने ब्राजील को हराकर वर्ल्ड कप पर अपना कब्जा जमाया.
ब्राजील के रोनाल्डिन्हो का भी अपने दौर में जलवा रहा. उनके शानदार खेल से ब्राजील 2002 में वर्ल्ड कप चैंपियन बना था.
यानि दस नंबरी के इस कारनामे में महान खिलाड़ियों की वो मेहनत और प्रतिभा छिपी हुई है जिसने इस नंबर को करिश्माई पहचान दे दी है. हालांकि इस वर्ल्ड कप में दस नंबर की जर्सी पहनने वाले सबसे प्रमुख खिलाड़ी मेसी अब तक सफल नहीं हो पाए हैं. नेमार भी अपनी फिटनेस को लेकर परेशान है. लेकिन क्या पता कि इनका जादू कब चल जाए? या फिर कोई नया दस नंबरी इस बार सबको दस का दम दिखा दे.